मन की बात
कहते हो तुम मन की बात ।
पर होती नहीं है जन की बात ।
मैं ही मैं करते रहते हो
कभी तो कर लो 'हम' की बात ।
उदघाटन करते हो जो भी
वह तो है 'मनमोहन' की बात ।
बोर हुए वादों से तेरे
नहीं है इनमें 'दम' की बात ।
राष्ट्रवाद का नारा देकर
भूल गये हो 'वतन' की बात ।
प्यारो मित्रों ... कह भरमाया
करते हो 'दुश्मन' की बात ।
डमरू खूब बजाते हो तुम
ढमढमा ढम दिन और रात।
(यदि आप इस कविता में दिये गये विचारो से इत्तफाक रखते हैं तो इसे
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पर होती नहीं है जन की बात ।
मैं ही मैं करते रहते हो
कभी तो कर लो 'हम' की बात ।
उदघाटन करते हो जो भी
वह तो है 'मनमोहन' की बात ।
बोर हुए वादों से तेरे
नहीं है इनमें 'दम' की बात ।
राष्ट्रवाद का नारा देकर
भूल गये हो 'वतन' की बात ।
प्यारो मित्रों ... कह भरमाया
करते हो 'दुश्मन' की बात ।
डमरू खूब बजाते हो तुम
ढमढमा ढम दिन और रात।
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