(कुछ हल्का- कुछ फुल्का)
125 रुपये का नोट
राम चन्द्र एक दुकान पर गया । वहां से 125 रुपये का सामान खरीदा। दुकानदार को उसने एक सौ का नोट, दो दस-दस के और एक पांच रुपये का नोट दिया।
राम चंद्र सोच रहा था कि यदि उसके पास 125 रुपये का नोट होता तो उसे इतने मूल्य के चार नोट न देने पड़ते। पर उसे ध्यान आया कि 125 रुपये का नोट तो होता ही नहीं। यदि रिजर्व बैंक 125 रुपये का नोट भी निकाल देती तो कितना आसान होता, उसके लिए और जनता के लिए। ऐसे में सरकार को चार नोटों पर खर्चा न करना पड़ता बल्कि एक नोट से ही काम चल जाता। इसी प्रकार राम चन्द्र सोच रहा था कि अगर 25 रुपये का नोट हो त ोइस मूल्य के लेन देन के लिए केवल एक ही नोट से काम चल जाता जबकि अब हमें 25 का लेनदेन करने के लिए या तो दस-दस के दो नोट और एक पांच रुपये का नोट अथवा एक बीस का और एक पांच का नोट या सिक्का देना पड़ता है। भगुतान करने का यह एक निहायत ही असुविधाजनक कार्य है। वास्तव में अभी तक हमारी मुद्रा के नोटों में पांच रुपये को जोड़ता हुआ कोई भी नोट रिजर्व बैंक द्वारा निकाला नहीं गया है। अतः भुगतान के लेन-देन में जनता को बहुत सी कठिनाइयां आती हैं।
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर 350/- रूप्यंे के नोट के आने के बारे में नोट की तस्वीर वायरल हुई थी। लेकिन पता चला कि रिजर्व बैंक की ओर से ऐसा कोई नोट जारी करने की खबर नहीं है।
किसी भी देश केंद्रीय बैंक की ओर से विभिन्न प्रकार के नोट इसलिए जारी किये जाते हैं कि जनता सुविधजनक तरीका से भुगतान कर सके। लेकिन हमारे यहां अभी भी बहुत सारे सुधार करने की आवश्यकता है। ज्यादा मुश्किल तब आती है जब 225, 125, 15, आदि का भुगतान करना होता है।
ऐसे मामलों में उस मूल्य का जोड़ बिठाते हुए हमें कई नोट देने पड़ते हैं। निश्चय ही सरकार का नोट छापने पर करोड़ों रुपया खर्चना पड़ता है। यदि उक्त बातों का ख्याल रख लिया जाये तो छपाई का काफी खर्चा बचाया भी जा सकता है।
चलते-चलतेः
जब देश की जनसंख्या 125 करोड़ हो चुकी है तो सरकार को भी चाहिए इसका जश्न मनाते हुए 125 रुपये का नोट निकाला जाये। क्यों? सुझाव कैसा लगा ?
क्विता
मेदी जी अब गद्दी छोडो
देश को अब ज्यादाा ना तोड़ो
बहुत करी है देश की सेवा
बहुत खा लिया तुमने मेवा
बहुत बेचलिया राम को तुमने
और किसी की आने दो
नही ंतो जनता आयेगी
यहां से तुम्हें भगायेगी।
2
एक कदिनं अंकल जी के यहां एक मेहमान आया। अंकल जी उन्हें मंदिर घुमाने ले गये। घर आये तो मैंने देखा अंकल जी उस मेहमान को चरखाचलाना सिख रहे थसे।
3
एक दिन अंकलजी मुझे कहने लगे आओ, मैं तुमहें बुलेट ट्रेन पर सैर करवाता हूं।
स्च? मेने कहा
ळां, औरवे मुझे एक जंगल में जे गये। ऊबड़ खबाड़ जमीन।
टंकलन जीम ुझे आप कहां ले आये?
ैन परघुमाने लाया हूं
प्र आप तेा मुझे जंगल में औार खेतों में ले आये हो।
‘ःयहयीय तो कमाल है। यहीं से बुलेट ट्रेन गुजरेगी।
‘पर लाईन कहां है?
बेले, लाईन की कल्पना करो। कल्पना करो कि हयां से लाईन छि?ब्छी हुई ळै। लाईन प् र बुलेट ट्रेन दौड़ी चली जा रही है। और कल्पना करों के ट्रेन पर तुम बैठ
ै होष्’,
टाहा! म्जा आ रहा है ना। हमारादेश कितनी उन्नति कर रहा है।
हां, अंकल जी, मान गये ।
लघु कथा -टीे
-ऐ बहन क्या कर रही हो
-करना क्या है। बोर हो रही हूं।
-मैं भी बोर हो रही थी।
-फिर क्या करें?
-चलो, मंदिर चलते हैं।
-यार, गाय को पवित्र क्यों माना जाता है?
एक जानवर को पवित्र माना जाता है। आदमी को नही।
-क्योंकि गाया का दूध पीते हैं। उका गोबर लीपा जाता । क्या आदमी का गोबर लीप सकते हैं।
कबीर खड़ा बाजार में....
कबीर खड़ा बाजार में सबसे मांगे वोट
एक को गले लगाय के दूजे को दे चोट।
पांच साल तक पण्डों के संग, खाई खूब खीर
पड़ी जरूरत वोट की, आया याद कबीर।
कबीर खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर
एक से रखी दोस्ती एक से रखे बैर।
आया पास कबीर के मुझको डालो वोट।
बात अगर मानी नहीं, देंगे गहरी चोट।
याद है मुझको वह गुजरा जमाना
बीते दिन
अच्छे हो या बुरे
ुकुछ सालो बाद
जब याद आते हों तो, वे संघर्ष के दिन
बीते दिनों के मित्र
अच्छे हो या बुरे
कुछ सालों बाद
तो अच्दे लगते हैं
याद करके
कभी कभी कसैले भी लगने लगते ळैं
उनके कहे कटु शब्दल
जब कभी वे हमारा मजाक उड़ाया करते थे
बुरे लगते वे दिन किन्हीं अवसरों पर
जो कीाी उन्होंने हमें कहे थे
या फिर भी वेदिन अच्दे लगते हैं
ज्ब याद आते हैं वेउिदन क्यों कहे थे हमने उनको गलत शब्द
ब्हुत बुरे लगते हैं हम अपने आप को
ज्ब याद आते हें वे पुराने दिन
ल्ेकिन सबसे अच्दे लगते हैं वे पुराने दिन
ज्ब याद आते हैं हमें कुछ अच्छे मित्र
म्नही मन हम उन्हें प्यार करते
अच्छा लगता थनके साथ बैठेना गप्पें मारना
अवसरों की तलाश में रहते थे हम
उनके साथबातें करना
या अवसरों की खोज करना
ळमारा यह खोजी मन
च्मक उठती थीं हमारे आंखे अचानक
डनकोअपने सामने देख
एक इतिहास होते सबके बीते हुए कल का
जे कीाी लिखा नहीं जाता
प्र उकरा रहता है जीवन पर्यंत हमारे मन पर
किन्हीं पन्नों पर
समय के साथ
हमस ब ऐतिहासिक पुरुष हैं
वह इतिस लिखानही जाता कागज के पन्ने पर और
मर जाता है समय के साथ हमारे साथ ही
हम सब पन्ना हैं इतिहास के एक बड़े ग्रंथ का।
मेरा बचपन
ओ मेरे बचपन
तू कभी लौट कर मत आना
मैं नहीं याद करना चाहता अपना बचपन
पिता की मार सहना
कभी खेले न थे साथियों के संग
मैं नही चाहता मुझे याद आयें
वे दिन
विषाद से भरे।
मैं नहीं चाहता मुझे याद आये वे दिन
मेरे शराबी बाप का मारना मेरी मां को,
निकालना गालिया मां को
मैं देखता हूं अपनी कमर पर वे निशान
अपने बापू की मार के।
मेरा बचपन कभी लौट कर मत आना।
मैं नहीं याद करना चाहता
उस बचपन को
लच्छू हलवाई की दुकान पर
जूठे कप धोते हुए उन मेरे नन्हें हाथों को।
मैं नहीं याद करना चाहता
उन बचपन के दिनों को
नहीं याद करना चाहता स्कूल ड्रेस में जाते हुए उन बच्चों को
जो कभी देख लेते थे मेरे हाथों में जूठे कप।
मैं नहीं चाहता अपनी मां को
शराबी बापू के हाथों पिटते हुए देखना
नही देखना चाहता हूं अपनी मां की आंखों में वह खौफ
गिड़गिड़ाते हुए बापू के सामनेे।
नहीं सुनना चाहता मैं अपने बापू को कहते हुए
‘ओ हराम की औलाद’
कितनी बड़ी गाली थी वह
मेरी मां के लिए ।
ओ मेरे बचपन !
तू कभी लौट के मत आना मेरे लिए।
मैं नहीं देखना चाहता भूखे अपनी मां को
जो अपने हिस्से की रोटी मुझे खिला देती थी।
और रहती थी खसुद भूखे।
मैं पहनना नहीं चहता
किसी के उतरे कपड़े
जो लेकर आती थी मेरी मां
मेरी मुंह बोली मौसी के घर से।
ओ मेरे बचपन
तु लौट क ेमत आना!
मैं नहीं चाहता झूठ बोलना मास्टर जी के सामने
बहाने बना कि भूल गया मैं फीस लाना,
मैं नहीं चाहता कि मांग कर पढ़ना किताबें अपने दोस्तों से।