गुरुवार, 2 जून 2016

Mere Shehar ke Janvadi Lekhak

 मेरे शहर के जनवादी लेखक
प्रगतिशील कहलाने के बहुत  शौकीन हैं 
कागजों पर क्रांति गीत  उलीकते
कुर्ता  पायजामा पहने
चश्मा ओढ़े
कंधे पर झोला लटकाए
 कवि  गोष्ठियां   करते हैं.
कविता पढ़ने से पहले
बजाते हैं तालियां  एक   दूसरे की कविता पर.

पहाड़ों से टकराने  और
समुद्र की छाती  पर चलने का दावा करते,
परन्तु डरते हैं उम्र खालिद और कन्नैया कुमार का नाम लेने से,
डरते है कलबुर्गी का नाम लेने से.
वे बनना नहीं चाहते देश द्रोही
नहीं चाहते  जेल जाना।
जेल में वो मजा कहाँ
जो बंद कमरे में बैठकर
चाय और बिस्किट के साथ
कविता पडने में है।
मेरे शहर के जनवादी लेखक
बंद कर लेते हैं दरवाजे और खिड़कियां
चर्चा करने से पहले
ताकि सुन न ले  उनकी आवाज
 और पकड़ कर न ले जाये पुलिस।
बहुत डरते हैं मेरे   शहर के जनवादी लेखक
खाकी वर्दी से।
(असली जनवादी लेखकों से क्षमा )
    -बलदेव सिह महरोक
   

  

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