बुधवार, 25 अप्रैल 2018

क्या बैंकों में नोटों की कमी कृत्रिम थी ?

क्या बैंकों में नोटों की कमी कृत्रिम थी ?

क्या कभी यह माना जा सकता है कि देश के कुछ भागों में एकाएक करंसी नोटों की कमी हो जाये और बाकी हिस्से में न हो। और जब मीडिया में नोटों की कमी के बारे शोर मचने लगे और जनता में हड़कंप सा मचता दिखाई देने लगे तो अगले सप्ताह ही बैंको में दोबारा नोट भरे नज़र आयंे। 
हां कुछ ऐसा ही हुआ यहां भी। क्या यह अचंभा सा नहीं लगता। मीडिया के शोर मचाने पर सरकार द्वारा विपक्ष को और विपक्षी पार्टियों द्वारा सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा तब रिजर्व बैंक की तरफ से यहां तक  कि सरकार की तरफ से भी बयान आये कि नोटों की छपाई तेज कर दी गई है।
इस सारे घटनाक्रम में,  लोगों के मन में कई तरह-तरह के संदेह उत्पन्न होना लाज़िमी था । कुछ लोगों को यह हास्यस्पद भी लगा कि  एकाएक नोट कहां गायब गये।  सवाल उठने लगे कि अगर कमी हुई तो देश के कुछ हिस्से में ही क्यों? बाकी हिस्सों में क्यों नहीं । क्या यह रिजर्व बैंक की नाकामी  व अप्रबंधन के कारण हुआ या इसके पीछे कोई अन्य सोची समझी चाल थी। 
यहां एक बात गौर करने लायक है कि  यह कमी उन प्रदेशें की बैंकों में हुई जहां आम जनता नगद करंसी का ज्यादा प्रयोग करते हैं। 
क्या नोटबंदी के बाद ऐसा करके  सरकार मुद्रा पर कोई दोबारा तजुर्बा कर रही थी? क्या यह सरकार की कैशलेस इकनाॅमी को बढ़ावा देने की रणनीति का एक हिस्सा था? या फिर जैसे कि विपक्षी पार्टियां सरकार पर आरोप लगाती आई हैं, कृ़ित्रम कमी उत्पन्न करके  जनता का ध्यान किसी  अहम मुद्दे से हटाना था  ? या फिर यह दिखाना था कि देखिये, सरकार ने कितनी तत्परता दिखा कर स्थिति को संभाल लिया  और ़तुरंत नोटों की आपूर्ति शुरू कर दी। अचानक  नोटों की कमी हो जाना और फिर उसी तरह एकदम उनकी आपूर्ति भी हो जाना, यह सब सरकार की तरफ से दिये गये कारणों से मेल नहीं खाता। 
 लोगों द्वारा लगाये  गये तरह-तरह के कयासों में एक यह भी था  कि यह केवल नोटों की कृत्रिम कमी पैदा की गई थी ताकि लोग विवश हो कर डिजिटल  मुद्रा का उपयोग करने लगें। परंतु जब जनता में बदहवासी सी दिखाई देने लगी व सरकार को यह दांव उल्टा पड़ते दिखाई देने लगा,  तो  बैंकों में नोटों की सप्लाई फिर से शुरू कर दी जाने लगी।  
खैर, बैंकों में नोटों  की कमी तो अब नहीं रही परंतु  लोगों के मनों में बहुत से  प्रश्न अभी भी अनुतरित रह गये हैं। 



क्या बैंकों में नोटों की कमी कृत्रिम थी ?


क्या बैंकों में नोटों की कमी कृत्रिम थी ?
क्या बैंकों में नोटों की कमी कृत्रिम थी ?

क्या कभी यह माना जा सकता है कि देश के कुछ भागों में एकाएक करंसी नोटों की कमी हो जाये और बाकी हिस्से में न हो। और जब मीडिया में नोटों की कमी के बारे शोर मचने लगे और जनता में हड़कंप सा मचता दिखाई देने लगे तो अगले सप्ताह ही बैंको में दोबारा नोट भरे नज़र आयंे। 
हां कुछ ऐसा ही हुआ यहां भी। क्या यह अचंभा सा नहीं लगता। मीडिया के शोर मचाने पर सरकार द्वारा विपक्ष को और विपक्षी पार्टियों द्वारा सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा तब रिजर्व बैंक की तरफ से यहां तक  कि सरकार की तरफ से भी बयान आये कि नोटों की छपाई तेज कर दी गई है।
इस सारे घटनाक्रम में,  लोगों के मन में कई तरह-तरह के संदेह उत्पन्न होना लाज़िमी था । कुछ लोगों को यह हास्यस्पद भी लगा कि  एकाएक नोट कहां गायब गये।  सवाल उठने लगे कि अगर कमी हुई तो देश के कुछ हिस्से में ही क्यों? बाकी हिस्सों में क्यों नहीं । क्या यह रिजर्व बैंक की नाकामी  व अप्रबंधन के कारण हुआ या इसके पीछे कोई अन्य सोची समझी चाल थी। 
यहां एक बात गौर करने लायक है कि  यह कमी उन प्रदेशें की बैंकों में हुई जहां आम जनता नगद करंसी का ज्यादा प्रयोग करते हैं। 
  क्या नोटबंदी के बाद ऐसा करके  सरकार मुद्रा पर कोई दोबारा तजुर्बा कर रही थी? क्या यह सरकार की कैशलेस इकनाॅमी को बढ़ावा देने की रणनीति का एक हिस्सा था? या फिर जैसे कि विपक्षी पार्टियां सरकार पर आरोप लगाती आई हैं, कृ़ित्रम कमी उत्पन्न करके  जनता का ध्यान किसी  अहम मुद्दे से हटाना था  ? या फिर यह दिखाना था कि देखिये, सरकार ने कितनी तत्परता दिखा कर स्थिति को संभाल लिया  और ़तुरंत नोटों की आपूर्ति शुरू कर दी। अचानक  नोटों की कमी हो जाना और फिर उसी तरह एकदम उनकी आपूर्ति भी हो जाना, यह सब सरकार की तरफ से दिये गये कारणों से मेल नहीं खाता। 
                   लोगों द्वारा लगाये  गये तरह-तरह के कयासों में एक यह भी था  कि यह केवल नोटों की कृत्रिम कमी पैदा की गई थी ताकि लोग विवश हो कर डिजिटल  मुद्रा का उपयोग करने लगें। परंतु जब जनता
में बदहवासी सी दिखाई देने लगी व सरकार को यह दांव उल्टा पड़ते दिखाई देने लगा,  तो  बैंकों में नोटों की सप्लाई फिर से शुरू कर दी जाने लगी।  
खैर, बैंकों में नोटों  की कमी तो अब नहीं रही परंतु  लोगों के मनों में बहुत से  प्रश्न अभी भी अनुतरित रह गये हैं। 





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