शनिवार, 7 अप्रैल 2018

Maफी मांगना -केजरीवाल का राजनीति में एक नया प्रयोग

माफी मांगना -केजरीवाल का राजनीति में एक नया प्रयोग

अरविंद केजरीवाल का  मानहानि मामले में, पहले  अकाली दल के  बिक्रम सिंह मजीठिया  से , फिर कपिल सिब्बल,  राजनाथ सिंह व अन्यों से और फिर अरुण जेतली से  माफी मांगना एक बार तो राजनीतिक गलियारों के हलचल सी मचा गया। जनता के एक बड़े हिस्से और विशेषकर आम आदमी पार्टी के साथ सहानुभूति रखने वाले कुछ लोगों ने केजरीवाल की आलोचना भी की। पंजाब विधान सभा में उनकी पार्टी के 20 विधायको में 4-5 को छोड़कर बाकी ने इतना बुरा मनाया कि अलग पार्टी बनाने की सोचने लगे। दिल्ली मेें  पंजाब के ‘आप’ विधायकों की बुलाई गई मीटिंग में  14 विधायक मीटिंग में शामिल नहीं हुए। अचानक लिए गये  फैसले के प्रति रोष होना स्वाभाविक था।
राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी केजरीवाल का यह फैसला अप्रत्याशित था। अप्रत्याशित इसलिए क्योंकि माफी मांगना आमतौर पर राजनेताओं  के शब्दकोश में नहीं होता। चाहे उन्होंने कितने भी गलत काम किए हों।  राजनीति विश्लेषक भी इस मुद्दे पर बंटे नजर आये।  एक वर्ग जो केजरीवाल के माफीनामे के फैसले को गलत समझता था, का यह मानना था कि यह केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य को विराम लगा देगा। वे इस फैसले को नौसिखिये और अनुभवहीन राजनीतिज्ञ का फैसला मानते हैं।
जबकि दूसरे वर्ग का कहना है कि ऐसा मानना एक भूल होगी। केजरीवाल भारतीय राजननीतिक पटल पर राजनीति की एक नई विधा लेकर आये हैं। और वह भी एक नये प्रयोग के साथ। वह स्वच्छ और ईमानदारी की राजनीति देना चाहते है। परन्तु अपने छोटे से अनुभव के साथ वे इतना तो समझ ही गये हैं वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था, जिसमें  पैसे का इतना बड़ा रोल है, को एक दम बदलना इतना आसान नहीं हैै। राजनीति में दांव पेच भी जरूरी हैं अन्यथा घर बैठना होगा। अतः माफी मांगना उनकी रणनीति का एक हिस्सा है जैसे कि उनकी बातों से पता चलता है।  इसे राजनीति में  एक नूतन प्रयेाग कहा जा सकता है। क्योंकि ऐसे उदाहरण राजनीति में भी बहुत कम देखने में आते हैं।
बेशक माफी मांगने जैसा फैसला लेकर उन्होंने एक बहुत बड़ा जोखिम उठाया हो । लेकिन केजरीवाल इतने अपरिपक्व भी नहीं है कि वे इस प्रकार के जोखिमों को समझते न हों।
दिल्ली में अपनी पहली बार सरकार बनने के 49 दिन के  पश्चात  ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था जिससे उनकी काफी आलोचना हुई थी। तब भी उन्होंने दिल्ली की जनता से माफी मांगी थी। माफी मांगने वाला उनका यह अस्त्र इतना फायदेमंद सिद्ध हुआ कि  दोबारा चुनाव होने पर दिल्ली की जनता की ओर से  उन्हें अभूतपूर्व स्मर्थन मिला और उन्हें 70 में से 67 सीटों पर ऐतिहासिक विजय प्राप्त हुई।
निश्चय ही केजरीवाल अपने सामने एक बहुत बड़े उद्देश्य को लेकर चल रहे हैं। इसलिये उस दिशा में फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं। फिलहाल उनके सामने 2019 का आम चुनाव है और उसके एक साल बाद हरियाणा विधान सभा का  चुनाव भी है जिसके लिए वे अभी से अभियान शुरू कर रहे हैं।  अतः  मानहानि जैसे छोटे-मोटे मामलों में उलझ कर वे अपनी ऊर्जा खर्च नहीं करना चाहते ।
  वे भारतीय जनता पाटी के मनसूबों को अच्छी तरह से समझे चुके हैं जो उन्हें इस प्रकार के मामलों में उलझाये रख कर उन्हें राजनीति में अपने पांव फैलाने से रोकने का प्रयत्न कर रही हैं।  क्योंकि आने वाले दिनों में  भाजपा कांग्रेस से भी ज्यादा केजरीवाल से भय खा रही है। यहीं कारण है कि केजरीवाल इन सब से मुक्त होकर अपने अगले पड़ाव की ओर बढ़ना चाहते हैं।
युद्ध के मैदान में भी शत्रु को मात देने के लिये  कभी-कभी पीछे हट कर शत्रु पर जोरदार हमला बोला जाता है। शायद यही रणनीति केजरवाल यहां अपनाने जा रहे हैं।
  वैसे भी भारतीय दर्शनशास्त्र यह दर्शाता है कि अपनी गलती पर क्षमा मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता।  ऐसे में माफी मांगने वाला उनका यह फैसला एक तरफ उनकी विनम्रता  को और दूसरी ओर उनकी राजनीतिक परिपक्वता को ही दर्शाता है। जिससे जनता की ओर से उन्हें फायदा ही मिलेगा।
निश्चय ही राजनीति में उनका ये फैसला एक नया प्रयोग है।



                  
फोटो: 
बलदेव सिंह महरोक

सोमवार, 2 अप्रैल 2018

 आजकल मां खबरें सुनाने के लिए नहीं कहतीं
                                           (बलदेव सिंह महरोक)
मेरी बूढ़ी मां अनपढ़ है। वह पढना नहीं जानती।  मुझे अखबार से खबरें सुनाने के लिए कहा करती है।
मैं अक्सर उन्हें खबरें पढ़कर सुनाया करता हूं।
आज मैंने बड़े गर्व के साथ एक खबर पढ़ कर सुनाई।
-मां, हमारे जवानों ने पाकिस्तान के चार जवान मार दिए।
-क्यों बेटा ? उसने पूछा।
-क्योंकि कल उनके जवानों ने हमारी दो जवान शहीद कर दिया था।
मैं दूसरी खबर पढ़कर सुनाने लगा तो मां बोली-बेटा, बस करो, अब और मत सुनाओ।
फिर कुछ रुक गंभीर हो कर बोली  -बेटा, शहीद क्या होता है?
मां, दुश्मन ने हमारे दो जवानों को मारा था। जब दुश्मन हमारे जवानों को मारता है तो हम उन्हें शहीद कहते हैं।
मां, एक बार फिर चुप हो गईं और पता नहीं किन विचारों में खो गईं।
कुछ देर बाद फिर बोलीं-बेटा, हमारे जवानों ने उनके जवानों को क्यों मारा है।
-मां, वो हमारे दुश्मन हैं।
-और हम उनके कौन हैं।
-हम उनके दुश्मन हुए।
-पर, बेटा, उधर भी तो माओं के बेटे शहीद हुए होंगे।
मां की आवाज़ कहीं दूर से आती सुनाई दे रही थी।
-मां, वे हमारे दुश्मन हंै। हमने उन्हें मौत के घाट उतारा है।
मां गले में अटका थूक निगलते बोली-हमारे इधर की माओं के बेटों की उधर की माओं के बेटों के साथ क्या दुश्मनी थी ?
मां का प्रश्न मुझे विचलित करने वाला था।
-मां, जवानों जवानों की आपस में दुश्मनी थोड़े ही होती है। उधर भी सैनिक होते हैं, इधर भी सैनिक होते हैं। उनकी डियूटी तो लड़ने की होती है। सीमा पार के लोगों से लड़ना ।  उन्हें मारना।
-पर ये लड़ते क्यों हैं?
-मां, इन्हें सरकार द्वारा जो हुक्म मिलता है, वही करते हैं।
-वे क्यों ऐसा करते हैं?
-क्योकिं उन्हें इसी काम के लिए रखा जाता है जिसके बदले में उन्हें वेतन मिलता है।
-यानि वे पैसे लेकर उन लोगों को मारते हैं जिनके साथ उनकी कोई दुश्मनी नहीं होती।
 मां की आंखें कहीं दूर शून्य में झांक रही थीं। मानो कुछ देख रही हों।
आजकल मां मुझे खबरें सुनाने के लिए नहीं कहती।
          (कृपया अपनी प्रतिक्रिया देवें। आभारी होऊंगा)

हमारी बेटियां (देश की सभी बेटियों के नाम)

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