गुरुवार, 21 जून 2018

A disussion on Misuse of Beaurocracy अफसरशाही का दुरुपयोग

  


   विपक्षी सरकारों को दबाने के लिए अफसरशही का दुरुपयोग एक खतरनाक खेल
1. भविष्य की सरकारों के लिए बोये जा रहे हैं कांटे। 
2. जनता के अंदर भाजपा के प्रति यह एक गलत संदेश।
3.  राष्ट्रीय राजनीति में ‘आप’ का कद भी बढ़ा। 

  दिल्ली में अफसरशाही का चुनी हुई सरकार के साथ सहयोग न करना, मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बुलाने पर सरकारी मीटिंगों से जानबूझ कर अनुपस्थित रहना, और तरह-तरह के बहाने लगाकर सरकार के लिए संकट पैदा करना, नियमों को तोड़मरोड़कर संकट खड़े करना, फाईलों पर विपरीत टिप्पणियां लिखना  जैसी  प्रवृति लोकतंत्र में एक निहायत ही गलत परम्परा को जन्म दे रही है। 

              यह सही है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल  नहीं होने के कारण बहुत सारी प्र्रशासकनिक शक्तियां वहां के उप राज्यपाल के पास निहित हैं। परंतु दिल्ली की राज्य सरकार और उपराज्यपाल की शक्तियों का बटवारा स्पष्ट न होने के कारण केंद्र मे बैठी सरकार द्वारा गलत फायदा उठाया जा रहा है। केंद्र में भाजपा सरकार द्वारा उप राज्यपाल के माध्यम से इन शक्तियों का दुरुपयोग किये जाने के आरोप लगातार लग रहे हैें। 

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का एलजी के सामने धरना देने का तरीका प्रथम दृष्टि में अटपटा सा जरूर लग सकता है  परंतु उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने हमेशा की तरह अपना विरोध  जताने के लिए  शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीका अपनाया । यही उनकी बड़ी विशेषता है कि वे अन्य दलांे के नेताओं की तरह  जनता को उकसाने जैसा कार्य नहीं करते बल्कि गांधीवादी सत्यग्रही तरीका अपनाते हैं ।

केंद्र में बैठी  भाजपा सरकार द्वारा जिस प्रकार अपने राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए प्रशासकनिक अधिकारियेां  व अन्य केंद्रीय एजेंसियों का उपयोग किया जा रहा है,  यह निश्चय ही एक गलत परिपाटी डाली जा रही है। वह यह भूल रही है कि सरकारें आनी-जानी होती हैं। न ही केंद्र में सदैव भाजपा की सरकार रहेगी और न ही दिल्ली में सदा आम आदमी पार्टी की सरकार रहेगी। उनहे नहीं भूलना चाहिए किि दूसरे दल की सरकार आने पर भविष्यमें वे सब कठिनाइयां भाजपा की राज्य सरकारों को भी आ सकती हैं जो अब  गैर-भाजपा सरकारों को पेश आ रही हैं। 

जनता द्वारा चुनी हुई सरकार अपनी बनाई नीतियों को नौकरशाही की सहायता से ही लागू करवाती हैं परंतु यदि केंद्र में सत्तासीन कोई सरकार राज्य में विरोधी दलों के खिलाफ प्रशासनिक सेवा के अधिकरियों का इस्तेमाल करे, तो यह न केवल देश के लिए बल्कि उसके अपने लिए भी यह घातक होगा।
 

मंगलवार, 19 जून 2018

वन-महोत्सव Manaya Ja Raha Hai






         वन-महोत्सव









वन महोत्सव मनाया जा रहा है
एक मंत्री जी को बुलाया जा रहा है

लम्बे रास्ते को सजाया जा रहा है 
कुछ झौपड़ियों को हटाया जा रहा है

दस-बीस पेड़ों को कटाया जा रहा है 

वहाँ गमलों को सजाया जा रहा है

उँचे मंच पर बिठाया जा रहा है

फूलों का हार पहनाया जा रहा है

टी.वी. वालों को बुलाया जा रहा है

स्कूली बालाओं को नचाया जा रहा है

फिर उद्घाटन करवाया जा रहा है

एक पौधा लगाया जा रहा है


बैंड बाजा बजाया जा रहा है

जनता का दिल बहलाया जा रहा  है                     

बलदेव सिंह महरोक


रविवार, 17 जून 2018


नोटबंदी का भूत हमेशा डराता रहेगा भाजपा को।

                   आने वाले समय में  आज़ादी के बाद की दो काली घटनाएं देश की जनता  को याद रहेंगी जो हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी हैं। एक 1975 के इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजैंसी और दूसरी मोदी सरकार की 2016 की नोटबंदी।
                   बहुत ढंढोरा पीटा गया और खुद की ही पीठ थपथपाई गई कि काला धन बैंकों में आ चुका है। यह नहीं बताया गया कि कितना। जनता जब सवाल करती है कि कहां है वह काला धन तो उसे जो जवाब मिलता है वह कुछ इस तरह का होता हैै-अरे, क्या आप वित्तमंत्री से ज्यादा जानते हैं?
आओ, अब हमारे कालू सेठ के पास चलें जिसके पास एक करोड़ रूपये का काला धन उसकी तिजौरी में रखा था ।
,                  नोटबंदी का सरकारी फरमान आया। काले धन वाले कालू सेठ ने पुराने नोटों की शक्ल में रखे अपने काफी नोट बैंक वालों से मिल कर नये नोटों में बदलवा लिये। बाकी बचे नोट उसने कुछ नौकरों, कुछ जानकारों, कुछ मित्रों कुछ रिश्तेदारों के माध्यम से बैंकों से बदलवा लिये। काला धन सफेद नहीं हुआ, बल्कि नये नोटों की शकल में बदल कर फिर उसकी तिजौरी में वापिस आ गया। कालू सेठ को कोई फर्क नहीं पड़ा। वह उस धन को फिर उसे उसी प्रकार मार्कीट में इस्तेमाल कर रहा है। अपने व्यापार में, जमीन जायदाद खरीदने में, सोना खरीदने में। हां, यह जरूर है कुछ दिनों के लिए उसे इस्तेमाल करने की रफ़्तार जरूर कम हो गई थी।
                   इस तरह के कई कालू सेठ देश में हैं। किसी के पास कुछ करोड़ तो किसी के पास हज़ारो करोड़। किसी कालू सेठ को कोई फर्क नहीं पड़ा। अगर फर्क पड़ा तो शरीफ ईमादार लोगों को पड़ा, करोड़ों कारोबारियों, दुकानदारों, मजदूर वर्ग, और छोटे-छोटे कारोबार करने वालों को पड़ा।
                   अब देखिए राजनीतिक पार्टियों सहित सरकारी गुण्डागर्दी। पार्टियों को मिलने वाले चंदे को सम्पूर्ण बदनीयति से ‘सूचना के अधिकार’ से बाहर रखा गया है। परंतु किसी पार्टी ने कभी नहीं कहा कि इसको भी सूचना के अधिकार के अंदर रखो............चोर-चोर मसेरे भाई।
                    चुनाव आयोग ने भी साफ कर दिया है कि राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाला चंदा ‘सूचना के अधिकार’ की परिधि में नहीं आता। यानि उनके पास सैंकड़ों करोड़ रूपये का चंदा कहां से आया, किस विजय माल्या या नीरव मोदी या डालमिया या अडानी, फलानी, ढकानी ने दिया, वह काला है या सफेद। इसकी सूचना मांगने का अधिकार आप जनता को नहीं है। 
                    लेकिन दूसरी ओर 15-20 हज़ार रूपये महीना कमाने वाले किसी मोहन या सोहन ने इधर-उधर से 5-7 लाख रूपये इकट्ठा करके एक छोटा सा घर खरीद लिया है तो उसको उसका पूरा हिसाब देना ही पड़ेगा।
हमारी जनता को अपनी औकात में रहना होगा। उसे यह ध्यान रखना होगा कि वह सिर्फ जनता हैं, हुकमरान नहीं। उसका अधिकार बस इतना है कि वह पांच साल बाद होने वाले एक मजमे में जाकर एक बटन दबा दें जो टीं.. .. करेगा।
                                                                                 -बलदेव सिंह महरोक

हमारी बेटियां (देश की सभी बेटियों के नाम)

 https://www.facebook.com/253981448301461/posts/1492619764437617/ हमारी बेटिया      इस बार फिर ओलंपिक आया। हमारी बेटियों ने  फिर करिश्मा दिख...