रविवार, 17 जून 2018


नोटबंदी का भूत हमेशा डराता रहेगा भाजपा को।

                   आने वाले समय में  आज़ादी के बाद की दो काली घटनाएं देश की जनता  को याद रहेंगी जो हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी हैं। एक 1975 के इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजैंसी और दूसरी मोदी सरकार की 2016 की नोटबंदी।
                   बहुत ढंढोरा पीटा गया और खुद की ही पीठ थपथपाई गई कि काला धन बैंकों में आ चुका है। यह नहीं बताया गया कि कितना। जनता जब सवाल करती है कि कहां है वह काला धन तो उसे जो जवाब मिलता है वह कुछ इस तरह का होता हैै-अरे, क्या आप वित्तमंत्री से ज्यादा जानते हैं?
आओ, अब हमारे कालू सेठ के पास चलें जिसके पास एक करोड़ रूपये का काला धन उसकी तिजौरी में रखा था ।
,                  नोटबंदी का सरकारी फरमान आया। काले धन वाले कालू सेठ ने पुराने नोटों की शक्ल में रखे अपने काफी नोट बैंक वालों से मिल कर नये नोटों में बदलवा लिये। बाकी बचे नोट उसने कुछ नौकरों, कुछ जानकारों, कुछ मित्रों कुछ रिश्तेदारों के माध्यम से बैंकों से बदलवा लिये। काला धन सफेद नहीं हुआ, बल्कि नये नोटों की शकल में बदल कर फिर उसकी तिजौरी में वापिस आ गया। कालू सेठ को कोई फर्क नहीं पड़ा। वह उस धन को फिर उसे उसी प्रकार मार्कीट में इस्तेमाल कर रहा है। अपने व्यापार में, जमीन जायदाद खरीदने में, सोना खरीदने में। हां, यह जरूर है कुछ दिनों के लिए उसे इस्तेमाल करने की रफ़्तार जरूर कम हो गई थी।
                   इस तरह के कई कालू सेठ देश में हैं। किसी के पास कुछ करोड़ तो किसी के पास हज़ारो करोड़। किसी कालू सेठ को कोई फर्क नहीं पड़ा। अगर फर्क पड़ा तो शरीफ ईमादार लोगों को पड़ा, करोड़ों कारोबारियों, दुकानदारों, मजदूर वर्ग, और छोटे-छोटे कारोबार करने वालों को पड़ा।
                   अब देखिए राजनीतिक पार्टियों सहित सरकारी गुण्डागर्दी। पार्टियों को मिलने वाले चंदे को सम्पूर्ण बदनीयति से ‘सूचना के अधिकार’ से बाहर रखा गया है। परंतु किसी पार्टी ने कभी नहीं कहा कि इसको भी सूचना के अधिकार के अंदर रखो............चोर-चोर मसेरे भाई।
                    चुनाव आयोग ने भी साफ कर दिया है कि राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाला चंदा ‘सूचना के अधिकार’ की परिधि में नहीं आता। यानि उनके पास सैंकड़ों करोड़ रूपये का चंदा कहां से आया, किस विजय माल्या या नीरव मोदी या डालमिया या अडानी, फलानी, ढकानी ने दिया, वह काला है या सफेद। इसकी सूचना मांगने का अधिकार आप जनता को नहीं है। 
                    लेकिन दूसरी ओर 15-20 हज़ार रूपये महीना कमाने वाले किसी मोहन या सोहन ने इधर-उधर से 5-7 लाख रूपये इकट्ठा करके एक छोटा सा घर खरीद लिया है तो उसको उसका पूरा हिसाब देना ही पड़ेगा।
हमारी जनता को अपनी औकात में रहना होगा। उसे यह ध्यान रखना होगा कि वह सिर्फ जनता हैं, हुकमरान नहीं। उसका अधिकार बस इतना है कि वह पांच साल बाद होने वाले एक मजमे में जाकर एक बटन दबा दें जो टीं.. .. करेगा।
                                                                                 -बलदेव सिंह महरोक

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