गुरुवार, 14 जून 2018


File:Kim Jong-Un Photorealistic-Sketch.jpg

       विश्व का एक अद्भुत व्यक्तित्व किम
(किम इसलिए प्रशंसनीय है क्योंकि उसने विश्व के अन्य देशों के नेताओं की तरह अपने देश  को बेचा या गिरवी नहीं रखा ।)
               12 जून 2018 के दिन केे वे महत्वपूर्ण क्षण जब दुनिया के दो शत्रु देशों के नेताओं ने एक दूसरे से हाथ मिलाया मानो समय  कुछ  समय के लिये ठहर सा गया था। अत्यंत रोमांचक और सकून भरे क्षण थे वे। दुनिया के इतिहास में एक नया पन्ना जुड़ गया। मानव के सभ्य और बर्बरता के लम्बे इतिहास में मानव के सभ्य होने के लक्षण एक बार फिर  उजागर होते हुए प्रतीत हुए।
      एक तरफ दुनिया की लगभग एक सदी से दबंगता से दादागिरी  करते हुए अमेरिका का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और दूसरी ओर उसे वर्षों से चुनौती देने वाला एक छोटे से देश उत्तरी कोरिया का तानाशाह शासक  किम जुंग।  एक अद्भुत नज़ारा था टीवी पर देखने वालों के लिए। अपने देश की सुरक्षा की गारंटी लेकर  किम ने अपने प्रमाणु बम के  कार्यक्रम को बंद करने के समझौते पर हस्ताक्षर किये। ट्रंप ने 45 मिनट की बातचीत के पश्चात् जब उसके व्यक्तित्व को समझा परखा तो आखिर उसे कहना पड़ा कि किम एक बुद्धिमान और अपने देश को प्रेम करने वाला व्यक्ति है। अपने देश को प्रेम करना, उसकी सम्प्रभुता बनाये रखना ही किसी नेता की सबसे बड़ी ताकत होती है और वही ताकत किम जुंग में भी है। जो उसे इतने शक्तिशाली देश के सामने उसे चट्टान की तरह डटे रखती है।
       दुनिया के ये दोनों व्यक्तित्व जिन्होंने मनुष्य के सभ्य इतिहास को थोड़ा आगे सरकाया, इतिहास के पन्नों में दर्ज रहेंगे। किम इसलिए भी याद रहेगा कि उसके सामने अमेरिका जैसे दबंग देश की उसके देश की ओर आंख उठाने की हिम्मत नहीं हुई । किसी शासक की यह सबसे बड़ी विजय होती है। ट्रंप और किम दोनों के लिए इस समझौते को  न तो जीत कहा जा सकता है और न ही हार बल्कि मानव के सभ्य इतिहास की ओर एक और कदम ।
         इस सारी घटना से हटकर जो देखने वाली बात है वह यह है कि एक तरफ 71 साल के बूढ़ा ट्रंप  और दूसरी ओर उसके सामने उससे आधी आयु का 34 साल का किम जुंग उन।  जो 10337 किलोमीटर दूर दुनिया के सबसे शक्तिशाली देेश की नींद हराम किए रखता है और उसकी दादागिरी को धत्ता बता कर रखता है।  किम ने 2011 में उत्तरी कोरिया के शासक का पद संभाला था और इतने वर्षों के बाद भी अपने देश के आंतरिक और बाहरी विश्व के दबावों का मुकाबला करता हुआ किसी व्यक्ति के लिए  इतना आसान नहीं हैं शासक बने रहना। ऐसा व्यक्ति दुनिया के इतिहास में  अद्भुत ही माना जायेगा। किम कोरिया के उस परिवार से है जो सन् 1948 से उत्तरी कोरिया पर तानाशाही शासन करता चला आ रहा है। कोरिया जो 35 वर्षों तक जापान के अधीन रहा और जिसे विश्व युद्ध के पश्चात् मित्र देशों ने उस देश को दो भागों में बांट दिया, उसी प्रकार जिस प्रकार अंग्रेजों ने जाते जाते भारत के दो टुकड़े कर दिया थे यद्यपि दोनों की परिस्थितिया अलग अलग थीं। किम के दादा ने कोरिया के एकीकरण के लिये दक्षिणी कोरिया के खिलाफ युद्ध छेड़ा था।  इन वर्षों के दौरान अब तक दोनों कोरिया में कितनी जानें गईं अथवा कितनी अथर्क हानि हुई यह एक अलग विषय है परंतु  अपने देश की संप्रभुता को कायम  रखने के लिए छोटे देशों को अकसर ऐसी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं।
        ऐसे समय में जब दुनिया के बड़े से बड़े देश भी अमेरिका को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकते, किम का इस प्रकार डटे रहना उसके अंदर की अद्भुत शक्ति को दर्शाता है।
      भारत के मीडिया की तरह ही अमेरिका की दरोगाई में विश्व के मीडिया द्वारा किम को चाहे कितना भी बदनाम  किया जाता रहा हो, परंतु अमेरिका जैसी दबंग के सामने घुटने न टेकना और अपने देश की संप्रभुता को अक्षुण बनाये रखना किम जुंग को विश्व के महानतम् नेताओं के बीच खड़ा करती है।
     --बलदेव सिंह महरोक


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