बुधवार, 23 मई 2018

क्या भाजपा का रथ रुक गया है?

             क्या भाजपा का रथ रुक गया है?
          
           कर्नाटक  विधान सभा चुनावों के नतीजे आये और उम्मीदों के अनुरूप ही आये। मोदी और अमितशाह की ताबड़तोड़ रैलियों के बावजूद व  केंद्र में अपनी सरकार होने के बावजूद वे मात्र 104 सीटें ही जीत पाये जबकि दावा 150 का कर रहे थे। बस, उनके लिये अगर खुश होने की कोई  बात है तो वह यह कि उनकी सीटें 40 से बढ़कर 104 हो गई।
उधर कांग्रंस भी बिना किसी के साथ गठबंधन के अकेले ही चुनाव मैदान में उतरी। उन्होंने 78 सीटें जीतीं। बेशक वह बहुमत का आंकड़े तक नहीं पहुंच पायी परंतु एक सम्मानजनक आंकड़ा जरूर प्राप्त कर लिया। यही नहीं सम्मानजनक दूसरे अर्थों में भी था। क्योंकि वोट प्रतिशत भाजपा के वोट प्रतिशत से ज्यादा प्राप्त किया। भाजपा को 36.2 प्रतिशत ही मिले जबकि कांग्रेस को 38  प्रतिशत वोट मिले । यानि भाजपा से दो प्रतिशत वोट ज्यादा मिले। 2013 के चुनावों की तुलना में यदि उनका वोट प्रतिशत बढ़ा है तो वह उन्होंने जेडीएस से व अन्यों से छीना है। कांग्रेस ने भी दो प्रतिशत वोट दूसरों से छीना है।
2013  के चुनावों की तुलना में इस बार भाजपा ने बेशक ज्यादा सीटें हासिल की हों परन्तु इससे भाजपा को लिए खुश होने जैसी कोई बात नहीं है। क्योंकि केंद्र में उनकी सरकार है जिस नाते उनकी पार्टी को कुछ लाभ मिलना लाज़िमी था।  परंतु ना तो  मोदी जी का जादू काम कर पाया और न ही अमित शाह की कोई रणनीति।  इसलिए 2019 के चुनावों के लिए कुछ चिंता में तो डाल ही दिया है और अब उन्हें अपनी रणनीति में परिवर्तन करना पड़ेगा।
ल्ेकिन कांग्रेस ने बेशक बहुमत आंकड़ा पार नहीं किया है परंतु उन्हें जरूर खुश होना चाहिए। देश में जनता के एक बड़े भाग की सहानुभूति उनके साथ थी जो सोशल मीडिया से साफ पता चल रहा था।
इस चुनाव प्रचार में सबसे बड़ी बात जो देखने में आई कि जहां प्रधानमंत्री  मोदी जी और अमित शाह अपने भाषणों में सभी हदें पार करते दिखाई दिए जो उनके पद के अनुरूप नहीं थे, वहीं राहुल गांधी के चुनाव भाषण बहुत सधे हुए, शालीनता से भरे हुए और मर्यादा में रह कर थे। उनके भाषणों की सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होने अपने भाषणों में जब भी प्रधानमंत्री का नाम लिया, तो सम्मान के साथ लिया। खास बात यह थी कि उन्होंने कभी मोदी जी का मज़ाक नहीं उड़ाया जो उनकी नैतिकता के मापदंड से उन्हें ऊंचा उठाती है।   मनमोहन सिंह के भाषण तो हमेशा की तरह नपे-तुले शब्दों में होते ही हैं। उनके एक एक शब्द में वज़न होता है।  अन्य कांग्रेस नेताओं की ज़बान भी इस बार नहीं फिसली। इन सबका लाभ कांग्रेस को आने वाले चुनावों में मिलेगा।  2019 के लोकसभा के चुनावों के लिए उनके लिये एक साकारात्मक सूचक है।
  यूं भारतीय राजनीति एक ऐसे ऐतिहासिक मोड़ से गुज़र रही हैं, जब क्षे़त्रीय पार्टियां सत्ता में एक बड़ी भूमिका निभा रही है। चाहे बंगाल हो, बिहार हो, उत्तर प्रदेश हो, उड़ीसा हो, तामिलनाडु हो, या महाराष्ट्र हो या उत्तरी पूवी राज्य हों। पिछले कुछ वर्षों से क्षेत्रीय दल लगातार  मजबूत होते जा रहे हैं। हाल ही में एनडीए में भागीदार बहुत सारी सत्ताधारी पार्टियों का बीजेपी से धीरे-धीरे मोह भंग होता जा रहा है और वे अपना स्वतंत्र रास्ता अख्तियार कर रहीं हैं। दोनों राष्ट्रीय दल चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, भविष्य में क्षेत्रीय दलों के सहयोग के बिना केंद्र में उनके लिए सरकार बनाना मुश्किल होगा।
         
                    --बलदेव सिंह महरोक

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