शनिवार, 14 जुलाई 2018

मन की बात

कहते हो तुम मन की बात  ।
पर होती नहीं है जन की बात ।

मैं ही मैं करते रहते हो
कभी तो कर लो 'हम' की बात ।

उदघाटन करते हो जो भी
वह तो है 'मनमोहन' की बात ।

बोर हुए वादों से तेरे
नहीं है इनमें 'दम' की बात ।

राष्ट्रवाद  का नारा देकर
भूल गये हो 'वतन' की बात ।

प्यारो मित्रों ...  कह भरमाया
करते हो 'दुश्मन' की बात ।
   
डमरू खूब बजाते हो तुम
ढमढमा ढम दिन और रात।

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