कितना अच्छा लगता है
कितना अच्छा लगता है राजा को
जब रियाया
खड़ी होती है
हाथ पसारे
उसके महल के द्वार पर
कितना अच्छा लगता है राजा को
जब रियाया गिड़गिड़ाती है
उसके सामने
एक रोटी के लिये
अच्छा लगता है उसे
तड़पती हुई रियाया को देख
भूख से
बिलबिलाते हुए
अच्छा लगता उसे
देखकर बच्चों के पिचके पेट
सूखी आंतड़ियां
और सांस लेते पिंजर
रोमांचक होता है उसके लिए
देखकर लाशों को
गिद्धों द्वारा नोचते हुए
ऐसे में
जाग उठता है
उसका दानवीर मन
बहुत अच्छा लगता है उसे
ऊंचे मंच पर खड़े होकर
रोटियां फैंकना
अपनी रियाया की ओर
बहुत अच्छा लगता है उसे
देखकर उन्हें
उचक-उचक कर लपकते हुए
रोटियों की ओर.........
(From my book "Baat Hai Par Chhoti Si")
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