मंगलवार, 17 जुलाई 2018

नास्तिकों की संख्या हिंदू धर्म से ज्यादा

विश्व में नास्तिकों की संख्या हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या से ज्यादा

यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए विश्व में नास्तिकों की संख्या विश्व में हिन्दुओं की कुल जनसंख्या से ज्यादा है। कुछ दिनों पहलेे ‘नवभारत’ में छपी एक रिपोर्ट जो कि ‘एडिहेरेंटस डाॅट काॅम’ ओर पी यू रिसर्च से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है, द्वारा विश्व में विभिन्न धर्मों को मानने वाली की संख्या इस प्रकार हैः-

विश्व की वर्तमान कुल जनसंख्या: लगभग सात अरब
1. ईसाई   -   220 करोड़  ;31.5 प्रतिशत
2. इस्लाम -   160 करोड़  ; 21 प्रतिशत
3. नास्तिक -  110 करोड़ ;15.35 प्रतिशत
3. हिन्दू   -  100 करोड़   ;13.95 प्रतिशत
4. चीनी पारंपरिक धर्म   -  39.4 करोड़
5. बौद्ध धर्म -        37.6 करोड
6. जातीय धार्मिक समूह  -  40 करोड़
7. सिख धर्म  -     2.3 करोड़
8. जैन धर्म -       42 लाख
9. शिंटो धर्म ; जापान - 40 लाख

परंतु 2011 में की गई  जनगणना के मुताबिक भारत में केवल 33004 ही नास्तिक ही दर्शाये गये हैं।  अर्थात 120 करोड़ जनता का केवल 0.0027 प्रतिशत।  ज्ञात रहे कि 2011 की जनगणना में पहली बार नास्तिकों की भी गणना की गई थी।

नास्तिकों को इन आंकड़ों को जानकर बहुत आश्चर्य हुआ है। निश्चय ही यह एक शरारतपूर्ण डाटा है।
‘भारत में लाखों की संख्या में ऐसे लोग  हैं जो किसी भी जाति अथवा धर्म में विश्वास नहीं रखते। वे प्रायः अपने आप को नास्तिक, तर्कवादी  मानते हैं या फिर किसी धर्म को न मानने वाले मानते हैं। यह कहना हैं’,  जी.विजयम का जो विजयवाड़ा में नास्तिक केंद्र के एक्सीक्यूटिव डायरेक्टर हैं।
‘जब आप यह कहते हैं कि नास्तिक केवल थोड़े से ही हैं तो आप वास्तविकता को तोड़-मरोड़ रहे हैं। यह रूढ़िवादियों और जनगणना अधिकारियों की शरारत है और इसे दुरुस्त करने की जरूरत है।’  विजयम ‘साईस एण्ड रैशनेलिस्ट  एसोसिएशन आॅफ इंडिया’  के प्रबीर घोष बताते हैं।
उन्होंने बताया कि जब जनगणना करने वाला कर्मचारीे उसके घर आया  तो घोष ने पूछा कि ‘आपने अपने रजिस्टर के धर्म के काॅलम में क्या लिखा है?’ तो कर्मचारी ने जवाब दिया ‘क्यो.ं?..हिन्दू..आप हिन्दू के हैं।  आप  हिन्दु नहीं हैं क्या? आपका उपनाम हिन्दू है।’ ‘इस पर मैंने  प्रोटेस्ट किया और बताया कि  मेरे नाम के सामने ‘नास्तिक’ लिखो। तो वह बीच में ही बोला कि इसके लिये तो उसे बहुत काट-पीट करनी पड़ेगी।’ यह सुनकर मैंने उससे वह कागज छीन लिया और उसमें लिखा ‘हिन्दू’ शब्द काट दिया’'', घोष बताते हैं।
श्री घोष एक कट्टड़ धार्मिक  बंगाली के रूप में पैदा हुए थे परन्तु व्यस्क होते ही उन्होंने एक रैशनेलिस्ट का रास्ता अपना लिया था। वे कहते हैं कि भारत में जनगणना वैज्ञानिक रूप से और ईमानदारी से नहीं की जाती।
जनगणना कितनी गलत है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है तामिलनाडू जैसे दृढ़ रैशनेलिस्ट  परम्परा वाले राज्य में में केवल 1297 नास्तिक दर्शाये गयेे हैं। द्राविड़ लिययक्का तामिझार परवई के सूबा वीरापांड्आन के अनुसार यह आंकड़ा बिल्कुल गलत है। वे कहते हैं कि  ‘केवल हमारे संगठन  के ही लगभग 2000 सदस्य हैं। जबकि हमारा संगठन तामिनाडु  सभी रैशनेलिस्ट आंदोलनों की जननी है।
विजयम ने अपनी एक टिप्पणी में कहा है कि यह सब  हमारे देश में लोगों को जानकारी न होने के कारण बहुत सारे नागरिकों को यह ज्ञात ही नहीं है  ‘कोई जाति नहीं’ अथवा ‘कोई धर्म नहीं’  लिखवाने जैसा उनके पास विकल्प भी होता है। श्री विजयम के पिता ने एथीस्ट सैंटर  नामक एक नास्तिक केंद्र की स्थापना की थी । इस संगठन ने उन लोगों के लिए  जनगणना विषय परबहुत संघर्ष किया है  जो सरकारी फार्मों के जाति अथवा धर्म के कालम  में ‘कोई नहीं’ अथवा  ‘निल’ लिखवाते हैं परन्तु कर्मचारियों द्वारा अड़चनें डाली जाती हैं।
विजयम कहते हैं कि  लगभग 29 लाख लोग ऐसे हैं जो गणना कर्मचाारियों को अपना धर्म नहीं बताते क्योंकि वे किसी भी धर्म को नहीं मानते परन्तु अपने आप को नास्तिक भी नहीं कहते हैं। यह संख्या और भी ज्यादा हो सकती है।  
‘नास्तिक’ शब्द सुनने में अपने आप में एक बड़ा अजीब सा शब्द प्रतीत होता है। शायद इसीलिए  कुछ लोग किसी भी धर्म को न मानते हुए अपने आप को नास्तिक नहीं कहते क्योंकि जब हम अपने आप को एथीस्ट कहते हैं तो उन्हें समाज में या तो अविश्वास के  साथ देखा जाता या फिर बड़ी अजीब नज़रों से देखा जाता है। वास्तव में नास्तिकों को संख्या  हमारी सोच  से कहीं ज्यादा है। ऐसे अधिकतर लोग नास्तिक होते हुए भी समाज के रीति रिवाजों के दबावों का सामना नहीं कर पाते और मजबूरन उन्हें उनका साथ देना पड़ता है अथवा उनमें शामिल होना पड़ता है।

 - बलदेव सिंह महरोक

¹¹‘‘एडिहेरेंट्स डाॅट काॅम’ विश्व में धार्मिक व अन्य प्रकार के आंकड़े एकत्रित करने वाला एक प्रमुख साईट है। 

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