रविवार, 25 मार्च 2018

nanhi chidiya नन्ही चिड़िया

-बलदेव सिंह महरोक


एक था  चिड़िया का नन्हा बच्चा . उसके छोटे छोटे पंख  उग आये थे.
वह धीरे धीरे अपने  घोंसले के आसपास फुदकने लगा था  ।  वहां से यहाँ., यहाँ से वहां।  
कुछ दिन बाद उसके पंख कुछ  बड़े हो गये. अब वह  उड़ना चाहता था।  आसमान में.. मुक्त  हवा में।
परन्तु उसकी माँ  चिड़िया बार बार उसे खींच  लाती वापिस घोंसले  में।  'तू अभी इतना बड़ा नहीं हु आ ।    बैठ यहां। बाहर  बहेलिये   जाल  लगाए  बैठे हैं ' , नन्हा बच्चा  मन मसोस कर रह गया । 
घोंसले में बैठा बैठा  वह  आसमान में उड़ते हुए  पक्षिओं को देखता 
'पता नहीं मैं कब उड़ूँगा . ' वह सोचता ।  

       फिर एक दिन नन्हा बड़ा    गया।      अब वह अच्छी तरह उड़ सकता  था. हाँ. .  एक  दिन मां  चिड़िया ने  उसे उड़ते देखा तो बहुत   खुश  हुई. .
     बोली, जाओ मेरे बच्चे , यह विशाल आसमान तुम्हारा इन्तजार कर रहा है. उड़ते रहो जब तक  साँस 'है ।  
       और  बच्चे ने अपनी माँ की ओर देखा।  चिड़िया ने अपने बच्चे  की ओर देखा.  
  'बॉय मम्मी,'  बच्चा बोला  और माँ  देखती रही, उसे उड़ते हुए।  दूर तक; . जब तक कि वह  आँखों से  ओझल नहीं हो गया।  चिड़िया के चेहरे पर  मुस्कान थी. . 
और आंसुओं की एक बूँद माँ  चिड़िया की आँखों से निकल कर उसकी चोंच पर लुडक  गई. ; 
आज  उसे आज अपनी पूर्णता का एहसास हो रहा था.
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