शुक्रवार, 4 मई 2018

कचरे के पहाड़ के दर्शन

                     कचरे के पहाड़ के दर्शन

हम में से बहुत सारे लोग कभी बस या अपने निजी वाहन में बैठकर करनाल -पानीपत के रास्ते दिल्ली जरूर गये होंगे।  ज्यों ही आप दिल्ली प्रवेश करते हैं, करनाल-बाईपास पर दुर्घंध का एक जोरदार भभाका आपका स्वागत करता है। आप इधर-उधर ताकने लगते हैं कि इतनी सड़ांध कहां से आ रही है।   
जनाब! ज़रा सड़क के उस तरफ बांई ओर नज़र दौड़ाइए। आप वहां एक ऊँचा पहाड़ सा देख रहे हैं। यह बदबू वहीं  से आ रही है। देखने में  यह पहाड़ी बहुत सुंदर लगती है। पर वास्तव में यह एक  कचरे का ढेर है। कचरे का यह ढेर सिर्फ एक नमूना है।  इस प्रकार के ढेर अन्य स्थानों पर भी  बताये जाते हैंै।
दिल्ली महानगर से निकलने वाला यह कचरा कुछ साल पहले सड़क की दूसरी ओर फैंका जाता था। वहां भी ऐसा पहाड़ सा बन गया था जिसे अब समतल कर पार्क आदि बना दिया गया है। वहां से बंद कर कर दिया तो इस स्थान पर फैंकवाना शुरू कर दिया जहां कुछ साल पहले दिल्ली की नालियों में निकलने वाला पानी जमा रहा करता था यद्यपि इसकी बगल में अब भी गंदे पानी की नदी सी  बहती दिखाई देती है।  यह कचरा देखते ही देखते  कुछ सालों में एक पहाड़ सा बन गया है।  जी.टी. रोड पर इस ओर से हर रोज़ लाखों लोग दिल्ली आते-जाते  हैं । कचरे का यह पहाड़ हर आने और जाने वाले का इसी प्रकार स्वागत किया करता है। आप नाक पर रुमाल रख लेते हैं। आपको उबकाई आने लगती है  और........ और  दिल्ली से जब आप बाहर निकलते हैं तो  यह पहाड पूरी बेशर्मी के साथ आपको कहता है कि ‘आपके पधारने का शुक्रिया!  मुझे सूंघने के लिए फिर आना।’ 
थोड़ी देर वहां रुक कर अगर आप हिम्मत बटोर सको तो- आपको वहां उपर कौवे  मण्डराते नजर आयेंगे और नीचे ढेर पर अनेकों कुत्ते अपना भोजन तलाशते दिखाई देते हैं ।  इन जानवरों के साथ-साथ बिना भेदभाव के बहुत सारे लड़के उस कचरे में से प्लास्टिक, खाली बोतलें, कागज आदि बीनते नज़र आयेंगे जिसे बेचकर वह अपना घर का खर्च चलाते हैं। कुल मिलाकर  एक अद्भुत सा नज़ारा आपको वहां देखने को मिलता है। टी.वी. वाले आपको यह दृश्य कभी नहीं दिखाते । इसके लिए आपको वहीं जाकर देखना पड़ेगा। 
कितना अच्छा लगता है भारत स्वच्छ अभियान के तहत  टीवी पर किसी नेता जी को हाथ में झाड़ू लेकर  कैमरे के सामने किसी चुनी हुई नुक्कड ़पर दो चार कागजों को बुहारते हुए फोटो खिचवाते देखकर। तब लगता है देश का कुड़ा करकट  अब साफ हो कर ही रहेगा । हमारी सरकारें  पिछले सालों में करोड़ों रुपये विज्ञापनों पर खर्च कर  लोगों को यह बताने में जुटी हैं कि देश में कूड़ करकट साफ हो रहा है। परंतु हमारे रहनुमाओं को इस प्रकार के कचरे के पहाड़ कभी नजर नहीं आते। 
लेकिन शायद हम लोग भी अब कचरा सूंघने के आदि हो चुके हैं। इसीलिए हम कभी अपने सत्ताधारियों से, जिनको हम वोट दिया करते हैं, कभी शिकायत नहीं करते।  हमारी सूंघने की शक्ति अब इतनी क्षीण हो चुकी है कि हमें पता ही नहीं चलता कि यह कचरा है या और कुछ।

चलते -चलते -  
वह समय कब आयेगा जब हमारे प्रधानमंत्री इस कचरे के पहाड़ कि उपर खड़े हो कर देश की जनता को संबोधित करते हुए अपने मन की बात बतायेंगे।

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