व्यंग्य (Excuse me Sir!)
झुमके की तलाश
इस देश में बहुत से सवाल अनुत्तिरित पड़े हैं जो वर्षों से हल होने बाकी हैं। इनमें एक सवाल है झुमके का।
बात बरेली की है। बहुत साल पहले लगभग 1965 में इस शहर के एक बाजार में साधना का झुमका गिर गया था । वह कई दिनों तक वहां अपना झुमका ढूंढती रही थी, गली-गली, बाजार-बाजार। बाज़ारों में गाना गाते हुए। पर झुमका नहीं मिला। मिलता भी क्यों? लोग बड़े बेईमान होते है। कौन देता है इतना कीमती झुमका। वह भी अगर साधना का हो।
यह तो उस समय की राज्य सरकार की जिम्मेवारी थी कि वह झुमका ढूंढ कर देती। राज्य सरकार अगर कामयाब न हो तो केंद्र सरकार की जिम्मेवारी थी । अगर फिर भी न मिलता तो सीबीआई जांच बैठाती, कोई आयोग बैठाती । परंतु सरकारें अक्सर वे काम नहीं करतीं जिनसे उनको वोट न मिलता हो। उत्तर प्रदेश में उसके पश्चात कई सरकारें आई,, चैधरी चरण सिंह की, चंद्र भानु गुप्ता की, सुचेता कृपलानी की, कमलापति त्रिपाठी की,, एच.एन. बहुगुणा की, एन डी तिवाड़ी की, आर.एन.यादव, बनारसी दास, श्रीपति मिश्रा, वीर बहादुर सिंह , वी.पी. सिंह, कल्याण सिंह, मुलायम सिंह , राजनाथ सिंह, मायावती , अखिलेश यादव और अब अदित्य नाथ योगी की । लेकिन अभी तक वह झुमका गायब है। किसी ने परवाह नहीं की। आज अगर हेमा मालिनी का झुमका गिर जाता तो उसे ढूंढने के लिए भाजपा सरकार ऐड़ी-चोटी का जोर लगा देती। भाजपा सरकार की यही एक खासियत है।
पिछली बार जब मोदी जी बरेली गये थे तो उन्होंने झुमके का जिक्र किया था। अब फिर चुनाव आने वाले हैं । मोदी जी अपने भाषणों में कह सकते हैं कि कांगे्रस ने 60 सालों में क्या किया। जो एक झुमका नहीं ढूंढ सकी । इतना पुराना गुम हुआ झुमका पांच साल में तो नहीं ढंूढा नहीं जा सकता। कम से कम दस साल चाहिए। वे सन 2022 तक जरूर ढूंढ कर देंगे।
अब समय आ गया है कि हम उस गुम हुए झुमके की तलाश करें। बरेली के मतदाताओं के लिए यह एक अच्छा मौका है कि वोट उसी पार्टी को देंगे जो वायदा करेगी कि झुमका ढंूढ कर देगी। यह बरेली के लोगों की नाक का ही सवाल नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश के की जनता की इज्जत का भी सवाल है जो वर्षों से बना हुआ है।
इंतज़ार करते हैं कि क्या होता है।
--बलदेव सिंह महरोक
झुमके की तलाश
इस देश में बहुत से सवाल अनुत्तिरित पड़े हैं जो वर्षों से हल होने बाकी हैं। इनमें एक सवाल है झुमके का।
बात बरेली की है। बहुत साल पहले लगभग 1965 में इस शहर के एक बाजार में साधना का झुमका गिर गया था । वह कई दिनों तक वहां अपना झुमका ढूंढती रही थी, गली-गली, बाजार-बाजार। बाज़ारों में गाना गाते हुए। पर झुमका नहीं मिला। मिलता भी क्यों? लोग बड़े बेईमान होते है। कौन देता है इतना कीमती झुमका। वह भी अगर साधना का हो।
यह तो उस समय की राज्य सरकार की जिम्मेवारी थी कि वह झुमका ढूंढ कर देती। राज्य सरकार अगर कामयाब न हो तो केंद्र सरकार की जिम्मेवारी थी । अगर फिर भी न मिलता तो सीबीआई जांच बैठाती, कोई आयोग बैठाती । परंतु सरकारें अक्सर वे काम नहीं करतीं जिनसे उनको वोट न मिलता हो। उत्तर प्रदेश में उसके पश्चात कई सरकारें आई,, चैधरी चरण सिंह की, चंद्र भानु गुप्ता की, सुचेता कृपलानी की, कमलापति त्रिपाठी की,, एच.एन. बहुगुणा की, एन डी तिवाड़ी की, आर.एन.यादव, बनारसी दास, श्रीपति मिश्रा, वीर बहादुर सिंह , वी.पी. सिंह, कल्याण सिंह, मुलायम सिंह , राजनाथ सिंह, मायावती , अखिलेश यादव और अब अदित्य नाथ योगी की । लेकिन अभी तक वह झुमका गायब है। किसी ने परवाह नहीं की। आज अगर हेमा मालिनी का झुमका गिर जाता तो उसे ढूंढने के लिए भाजपा सरकार ऐड़ी-चोटी का जोर लगा देती। भाजपा सरकार की यही एक खासियत है।
पिछली बार जब मोदी जी बरेली गये थे तो उन्होंने झुमके का जिक्र किया था। अब फिर चुनाव आने वाले हैं । मोदी जी अपने भाषणों में कह सकते हैं कि कांगे्रस ने 60 सालों में क्या किया। जो एक झुमका नहीं ढूंढ सकी । इतना पुराना गुम हुआ झुमका पांच साल में तो नहीं ढंूढा नहीं जा सकता। कम से कम दस साल चाहिए। वे सन 2022 तक जरूर ढूंढ कर देंगे।
अब समय आ गया है कि हम उस गुम हुए झुमके की तलाश करें। बरेली के मतदाताओं के लिए यह एक अच्छा मौका है कि वोट उसी पार्टी को देंगे जो वायदा करेगी कि झुमका ढंूढ कर देगी। यह बरेली के लोगों की नाक का ही सवाल नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश के की जनता की इज्जत का भी सवाल है जो वर्षों से बना हुआ है।
इंतज़ार करते हैं कि क्या होता है।
--बलदेव सिंह महरोक
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